शास्त्रों ने विद्यादान को महादान की श्रेणी में रखा है, किन्तु यदि आधुनिक युग के परिपेक्ष्य में दृष्टिपात करें तो इस बात पर बहुमत सहमत होगा कि विद्यादान के साथ साथ यदि इसमें नेत्रदान को भी जोड़ दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
आज हमारे समाज इस विषय में बहुत सी भ्रांतियां हैं कि नेत्रदान करना चाहिए अथवा नहीं। आज जब विज्ञान ने लगभग सारे कृत्रिम अंगो का निर्माण कर लिया है तब केवल कुछ अंग ऐसे हैं जिनका निर्माण विज्ञान नहीं कर पाया और उनमे से एक है नेत्र। इसका केवल एक ही उपाय है-नेत्रदान। मैं समझता हूँ कि यदि हम नेत्रदान करते हैं तो न केवल एक व्यक्ति को संसार देखने लायक बनाते हैं, बल्कि एक परिवार को रोटी देते हैं, समाज से एक भिखारी कम करते हैं और देश को दृष्टि देते हैं, क्योकि इस अमूल्य निधि को मृत शरीर के साथ जलाने का कोई लाभ नहीं।
आज सभ्य देश और समाज इस बात को पूर्ण रूप से आत्मसात कर चुके हैं कि नेत्रदान न केवल हमारा नैतिक उत्तरदायित्व होना चाहिए बल्कि नियमानुसार अनिवार्य होना चाहिए। एक बात बताना चाहता हूं जो लोग कहते हैं कि नेत्रदान से अंग भंग होता है और मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती, मेरे हिसाब से ऐसे लोग आँख से नहीं वरन् जेहन से अंधे हैं।
आज सभ्य देश और समाज इस बात को पूर्ण रूप से आत्मसात कर चुके हैं कि नेत्रदान न केवल हमारा नैतिक उत्तरदायित्व होना चाहिए बल्कि नियमानुसार अनिवार्य होना चाहिए। एक बात बताना चाहता हूं जो लोग कहते हैं कि नेत्रदान से अंग भंग होता है और मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती, मेरे हिसाब से ऐसे लोग आँख से नहीं वरन् जेहन से अंधे हैं।
" न किसी हमसफ़र से न हमनशीं से निकलेगा
हमारे पैर का कांटा हमीं से निकलेगा "
हमारे पैर का कांटा हमीं से निकलेगा "
3 टिप्पणियाँ:
राजेंद्र भाई बहुत अच्छी संवेदन शील पोस्ट के लिए साधुवाद.... मैं स्वयम नेत्र चिकित्सा विभाग से जुडा हूँ, और जानता हूँ कि नेत्र दान को बढ़ावा देने के लिए शाशन द्वारा काफी कुछ किया जाता है... और इसका परिणाम भी देखने में आ रहा है कि दान में मिलने वाले नेत्रों कि संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन इसके बावजूद इस क्षेत्र में बड़ी लम्बी दूरी तय करनी बाकी है...
हमारे देश में लाखों की संख्या में ऐसे दृष्टिहीन हैं जो नेत्रदान की कमी के कारण दृष्टिहीनता का अभिशाप झेल रहे हैं, उनमें से बड़ी संख्या बच्चों की है जो और भी दुखदाई है.... हम सबको इस क्षेत्र में प्रयास करना होगा कि तमाम भ्रांतियों को दूर कर नेत्रदान को भारत में भी श्री लंका की तरह परम्परा के रूप में स्थापित किया जा सके...
पुनः साधुवाद...
aapka bhi dhanyavad habibji
Achha Kadam - Achhe Vichar
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