वसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है। इस ऋतु में चारों तरफ रंग-रंगीले फूलों से धरती सज जाती है। खिले हुए फूल वसंत के आगमन की घोषणा करते हैं। खेतों में फूलों से लदी हुई सरसों हवा के झोकों से हिलती ऎसी दिखाई देती है, मानो सामने सोने का सागर लहरा रहा हो।
शीशम के पेड़ हरे रंग की रेशम सी कोमळ पत्तियों से ढक जाते हैं।स्त्री-पुरूष केसरिया रंग के कपड़े पहनते हैं। उनके वस्त्रों का रंग प्रकृति के रंगों में घुलमिल जाता है, मानो वे भी प्रकृति के अंग हों। प्राचीन काल में वसंतोत्सव या मदनोत्सव नामक पर्व मनाया जाता था। इस उत्सव के दिन गांव-गांव में नाच-गान होते थे। उनमें स्त्री और पुरूष दोनों ही भाग लेते थे।कचनार की शाखाएं इस ऋतु में गुलाबी, सफेद-बैंगनी-नीले फूलों से ढक जाती हैं। वे पूरे एक महीने तक आसपास के दृश्य की शोभा बढ़ाती हैं। इस ऋतु में सेमल के फूलों की छटा निराली होती है। इसके फूल कटोरी जैसे आकार के नारंगी-लाल होते हैं।इस ऋतु में अमराइयों में भी सहसा नया जीवन आ जाता है और आम के वृक्षों में पीली मंजरियों के बौर आ जाते हैं। बौर की मधुर सुगंध से कोयलें अमराइयों में खिंची चली आती हैं और उनकी मधुर पुकार अमराइयों में गूंज उठती है। मार्च मास का प्रथम पक्ष बीतने पर वसंत में पूर्ण यौवन की मस्ती-सी आ जाती है।ढाक के पेड़ वसंत के आते ही अपनी त्रिपर्णी पत्तियां गिराने लगते हैं, और उनकी टहनियां गहरे भूरे रंग की कलियों से भर जाती हैं। कुछ दिनों के बाद सारी कलियां एक साथ अचानक ही इस प्रकार खिल जाती हैं, मानो किसी ने उन्हे जादू की छड़ी से छू दिया हो। आग की लपटों जैसे नारंगी-लाल रंग के फूलों से लदे हुए ढाक के पेड़ अंगारों से दिखाई देते हैं। गहरे लाल रंग के फूलों के वस्त्रों में धरती नववधू सी मालूम होती है।बर्फीले क्षेत्रों के उगे सफेद फूलों वाले कैथ के वृक्षों में सफेद फूल खिलने लगते हैं और पत्तियां निकल आती हैं। सफेद फूलों के साथ उनकी शोभा देखते ही बनती है।वसंत में फूलों से लदी वृक्ष की शाखाओं पर मक्खियों के झुंड के झुंड गुंजार करते और फूलो की गंध-रस का आनंद लेते हैं। उल्लास-उत्साह इस मास में अपने चरम पर होता है। चमेली की खिली हुई कलियां अपनी सुगंध से हवा को सुगंधित करती हैं। वहीं आकाश भी झील की तरह नीला हो जाता है, मानों उसमें सूर्य और चन्द्रमा रूपी दो फूल खिले हों और वह भी वसंत का स्वागत कर रहा हो।