राजस्थान के नागौ जिले के छोटे से गांव चुंटीसरा में रहने वाली सरस्वती के बचपन से ही दोनों हाथ नहीं है, फिर भी उसने अपनी मोहताजगी को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया है। सरस्वती के मुतबिक भले ही कुदरत ने उसके साथ न्याय नही किया मगर वो पढाई के बाद मजिस्ट्रेट बनकर जनता को न्याय दिलाना चाहती है।
आज सरस्वती के संबंध में इसीलिए बात की जा रही है, क्योकि भारत वर्ष में आज विद्यादायिनी सरस्वती की जगह-जगह पूजा होगी। इन सबसे हटकर बात करें तो नागौर के चुंटीसरा गांव की सरस्वती भी अपने आप में कुछ कम नहीं है। बचपन से ही दोनो हाथ नही होने के बाद भी उसने हिम्मत हारकर एमए पास किया है और वो भी अंग्रेजी विषय से।
सरस्वती अपने पैरों से लिखने के साथ साथ पैंटिंग, सिलाई सहित अन्य सभी काम कर लेती हैं। सरस्वती को पैर से लिखते देखकर सहसा पहली बार कई लोग हैरान होते हैं। लोग सोंचते है कि ये पैर से क्यों लिख रही है, लेकिन इसके पीछे की हकीकत कुछ और है। सरस्वती के बचपन से दोनो हाथ नही है बिना हाथों के भी ये जिंदगी से दो-दो हाथ करने का माद्दा रखती हैं। एक वक्त ऐसा था जब स्कूल स्टाफ ने सरस्वती को एडमिशन देने से साफ इंकार कर दिया था, लेकिन जब सरस्वती ने पैर से लिखकर दिखाया तो सब लोगों की बोलती बंद हो गई।
सरस्वती अपने पैर से सिर्फ लिखती ही नही बल्कि, एक आम इंसान की मानिंद सभी काम कर लेती है। पैर से मोती जैसे अक्षर लिखने वाली कलम को रफ्तार से चलाने वाली सरस्वती की मंजिल यहीं खत्म नही होती, बल्कि वह एमए के बाद एलएलबी करने का इरादा भी रखती हैं और फिर मजिस्ट्रेट बनना चाहती है।
एक तरह से देखा जाए तो भारत देश में विकलांगता अभिशाप मानी जाती है, लेकिन अगर शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों पर ध्यान दिया जाए तो वे भी सामान्य बच्चों की तरह जीवन जीने का प्रयास कर सकते है। सरस्वती की शिकायत है कि विकलांग विधार्थियों को फीस मे छूट मिलती है लेकिन इन्हे कभी भी इस योजना का लाभ नही मिल पाया।
सरस्वती के हौसले की सभी तारीफ करते हैं। सच तो है, अपने चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रखने वाली सरस्वती अपने दिल का दर्द कभी चेहरे पर नही आने देती। कुदरत ने भले ही सरस्वती को हाथ नही दिए मगर ऐसी हिम्मत दी, ऐसा जज्बा दिया कि बगैर हाथ होते हुए भी वह अपनी मंजिल के करीब पहुंचती जा रही है। सरस्वती हम सबके लिए यकीनन एक मिसाल है।