माह के अंत मे शीत ऋतु अपनी समाप्ति की ओर होती है, वहीं वसंत ऋतु दस्तक देने लगती है। ऋतुराज वसंत के आगमन पर चारों ओर फूलों की बहार जाती है। इन फूलों में पलाश का फूल भी पूरी तरह से खिल कर वसंत के स्वागत के लिए आतुर रहता है।
पलाश करीब पन्द्रह मीटर ऊंचा वृक्ष होता है। इसका तना गांठदार तथा छाल मोटी, राख के रंग की होती है। नई शाखाएं पत्ते, रोओ और रोमिकाओं से ढके होते हैं। पत्ते हरे, मोटे, चौड़े तथा तीन पर्णकों में बंटे होते हैं। जिसमें से पाश्र्व के दो पत्ते तो एक दूसरे के आमने-सामने लगे रहते हैं। तीसरा सिरे पर लगा रहता है, जो अपेक्षाकृत बड़ा और लम्बाई-चौड़ाई में बराबर होता है। सर्दी के मौसम में पत्ते झड़ जाते हैं और टेढ़ी-मेढ़ी शाखाएं नंगी खड़ी रहती हैं। पलाश को ढाक, टेसू, केसू और छौला, बंगाली तथा मराठी में पलस, गुजराती में खाखरी, कन्नड़ में मुत्तूग, तमिल में पिलासू, उडिया में पोरासू, तेलुगु में मोदूक, मलयालम में मुरक्कच्यूम, संस्कृत में पलाश, किंशुक और लैटिन में ब्यूटिया फ्रोंडोसा या ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द पलाश दो शब्दों से मिलकर बना है- पल और आश। पल का अर्थ है मांस और अश का अर्थ है खाना। यानी पलाश का अर्थ हुआ, ऎसा पेड़ जिसने मांस खाया हुआ है। खिले हुए फूलों से लदे हुए पलाश की उपमा संस्कृत लेखकों ने युद्ध भूमि से की है। वहीं संस्कृत साहित्य में इसके सुन्दर रूप का वर्णन श्रृंगार रस के लिए भी किया गया है।
फरवरी महीने के अंत में पलाश वृक्ष की शाखाओं पर काले रंग की पुष्प कलिकाओं के गुच्छे आने लगते हैं। यह वसंत ऋतु के आने का संकेत होता है। फाल्गुन मास में जब सारा वृक्ष नारंगी लाल रंग के फूलों से ढक जाता है तो इन दिनो पलाश के जंगल ऎसे लगते हैं, मानों सारा जंगल ही आग की लपटों में धधक रहा हो। इसी कारण इस वृक्ष को जंगल की ज्वाला भी कहते हैं।
पलाश के फूल गहरे लाल रंग के होते हैं और तोते की चोंच के समान दिखाई देते हैं, इसलिये पलाश को संस्कृत में किंशुक भी कहते हैं। वसंत में खिलने वाला यह वृक्ष गरमी की तेज तपन में भी अपनी छटा बिखेरता रहता है। उस समय गरमी से व्याकुल होकर सारी हरियाली नष्ट हो जाती है, जंगल सूखे नजर आते हैं, दूर तक हरी दूब का नामोनिशान भी नजर नहीं आता, उस समय ये केवल फलते-फूलते हैं, बल्कि अपने सर्वोत्तम रूप को प्रदर्शित करते हैं। आयुर्वेद में पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं। इसके पत्ते के पत्तल-दोने भी बनते हैं।